बॉलीवुड डेस्क. डॉ. बशीर बद्र आज 85 साल के हो गए। उनका जन्म 1935 में उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में हुआ था। डॉ. बद्र के जन्मदिन के मौके पर उनके बारे में बता रहे हैं गजल गायकतलत अजीज।
मैं डॉ. साहब, जैसा मैं बशीर बद्र को प्यार से कहता हूं, से मेरठ में 1982 की गर्मियों में मिला था। मैं उनसे कन्सर्ट में मिला और तुरंत ही हम दोनों दोस्त बन गए, हालांकि वह मेरे सीनियर थे। उन्होंने अपनी गजलें मुझे दीं और उन पर कम्पोजिशन बनाने को कहा। मैंने देखा कि उनका राइटिंग स्टाइल काफी लिरिकल था- गाने के अनुकूल और खूबसूरत एहसासों से भरा हुआ।
गालिब के मिसरे की तरह-
हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे
कहते हैं कि "ग़ालिब' का है अंदाज़-ए-बयां और
यह बात बशीर साहब पर भी सटीक बैठती है। उनका अंदाज-ए-बयां और तस्सवुर अनोखा है। इस शेर पर गौर फरमाएं, जो मेरा पसंदीदा है, जिसे मैंने अनगिनत बार इस्तेमाल किया है-
आहिस्ता गजल पढ़ना ये रेशमी लहजा है
तितली की कहानी है खुशबू की जुबानी है
उनकी गजलों की खूबसूरती यही है कि उनमें बहुत गहरे एहसास छिपे हैं, लेकिन यह सीधे आम आदमी के दिल पर जाकर दस्तक देते हैं और युवा पीढ़ी भी इससे अछूती नहीं।
मुझे याद है- एक यंग रिपोर्टर ने पूछा था कि युवा पीढ़ी गजलों से कैसे जुड़ाव महसूस करती होगी, उन्हें उर्दू ज़ुबान तो अच्छी आती नहीं। मैंने कहा- आप ‘गजल’ शब्द को भूल जाइए और सिर्फ दो लाइनें सुनकर मुझे बताइए कि आपको समझ आई या नहीं
वो दो लाइनें थीं डॉ. बद्र साहब की, जिन्हें मैंने गाया भी है-
अगर तलाश करूं कोई मिल ही जाएगा
मगर तुम्हारी तरह कौन मुझको चाहेगा
भाषा को छोड़ सिर्फ इन लाइनों के जज्बातों को समझेंगे तो हर किसी को समझ आएगा। और मैं मानता हूं कि गजल के लिए यही बशीर बद्र का योगदान है। उन्होंने आम इंसान के जज्बातों, एहसासों को जब्त किया और आसान लफ्जों में खूबसूरती से बुन दिया। अपने क्राफ्ट के मास्टर और एक ऐसे प्यारे इंसान जिसने जिंदगी में मुश्किलें तो तमाम झेलीं, लेकिन कड़वाहट कभी हावी नहीं होने दी। शुक्रगुजार हूं कि उनके साथ कीमती वक्त गुजारने का मौका मिला, उनका प्यार मिला।
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