बॉलीवुड डेस्क.अपने बेटे फरहान अख्तर के 46वें जन्मदिन पर शायर, गीतकार और पटकथा लेखक पिता जावेद अख्तर बता रहे हैं बाप-बेटे के रिश्ते की गहराइयों के बारे में और पिता के रूप में कर रहे हैं बेटे का विश्लेषण। दैनिक भास्कर के लिए जावेद अख्तर से यह खास चर्चा उनके निजी मित्र व उन पर लिखी बेस्टसेलर्स पुस्तक 'ख्वाबों के गांव में' के लेखक अरविंद मंडलोई ने की।
फरहान आपके परिवार की क्रिएटिविटी की परंपरा को आगे बढ़ाएंगे, इसका अहसास आपको कब हुआ?
देखिए साहब... परंपरा तो हमारे परिवार की यह है कि हम बेटे को नालायक समझते हैं। मेरे पिता को उनके पिता नालायक समझते थे। मेरे पिता मुझे नालायक समझते थे और मैं फरहान को नालायक समझता था। बहुत समय तक मुझे फरहान को लेकर यही फिक्र होती थी कि ये लड़का कभी जिंदगी में कुछ करेगा भी या नहीं। आज देखिए उसने मुझे न सिर्फ हैरान किया बल्कि गलत भी साबित किया है। इस बात पर मुझे फक्र के साथ खुशी भी होती है।
एक बार उसने मुझे दो पन्ने पर खुद का लिखा हुआ कुछ दिखाया था। उसमें जो राइटिंग की स्टाइल और शब्दावली उसने इस्तेमाल की थी, वह मुझे बहुत अच्छी लगी। फिर वो बहुत दिनों बाद मेरे पास आया और मुझसे कहा कि मैं और मेरा दोस्त रितेश एक फिल्म बनाना चाहते हैं। उसकी स्क्रिप्ट उसने मुझे दी। वह स्क्रिप्ट 'दिल चाहता है' की थी। मैंने जब स्क्रिप्ट पढ़ी तो हैरान हो गया। उससे कहा कि कहानी तो तुम्हारी ठीक है। लेकिन तुम फिल्म बनाओगे कैसे, इसके लिए पहले तुम्हें स्टार्स से बात करनी पड़ेगी। वह मुझसे बोला आमिर खान से मेरी बात हो चुकी है वह फिल्म करने के लिए तैयार हैं।
मैं हैरान हो गया कि आमिर जैसे बड़े सितारे को साइन करना इतना आसान तो है नहीं, तो एक नया लड़का कैसे इतने बड़े स्टार को साइन कर आया। इसका जिक्र मैंने अपने एक प्रोड्यूसर दोस्त से किया तो उसने कहा कि, यदि आमिर इस प्रोजेक्ट में हैं तो वह इसे लेने तैयार है और इस फिल्म के लिए 80 लाख रुपए फरहान को ऑफर कर रहा है।
मैंने यह बात फरहान को बताई तो वह बोला-वह चाहे मुझे कितनी भी बड़ी रकम क्यों न ऑफर करें, फिल्म तो मैं अपने दोस्त रितेश के साथ ही बनाऊंगा।
हालांकि मुझे चिंता थी कि दोनों ही नए हैं, कैसे फिल्म बनाएंगे। पर दोनों ने मिलकर फिल्म बनाई। इसमें बेटी जोया का भी कंट्रीब्यूशन था। वह न्यूयॉर्क से फिल्ममेकिंग सीखकर आई थी। उसने इन्हें एक नया ढांचा दे दिया कि फिल्म बनाओ तो इस तरह से बनाओ। पूरा सिस्टम ही चेंज कर दिया उसने। उसकी वजह से ये फिल्म बहुत ही सिस्टमैटिकली बनी।
इसमें डायलॉग भी खुद फरहान के लिखे हुए है, स्क्रिप्ट भी उसकी ही है। जब ये फिल्म पूरी हुई और इसका फाइनल प्रिंट देखा गया तो मैं नाम नहीं लेना चाहूंगा, कुछ लोगों ने कहा कि साहब ये फिल्म बहुत स्लो है। अगर आपने इसे एडिट करके फास्ट नहीं की तो ये फिल्म चलेगी नहीं। जिन्होंने कहा वे काफी बड़े लोग थे। मैंने फरहान से कहा कि क्या करोगो, तब उसने कहा मुझे तो यही टैम्पो चाहिए, मैं इसे फास्ट नहीं करना चाहता हूं। मैंने रितेश से पूछा तो उसने कहा कि फरहान अगर मुझसे कहेगा तो मैं पूरी फिल्म रिजेक्ट करके फिर से शूट कराऊंगा। कोई भी दूसरा मुझे कुछ भी बोले मैं उसकी बात नहीं सुनूंगा, मैं सिर्फ फरहान की बात सुनूंगा। रितेश भी मेरे बच्चे की तरह है। एक-दूसरे पर उनका कॉन्फिडेंस है।
एक बार आमिर खान की मुझसे इस बारे में बात हुई, और उन्होंने मुझसे कहा कि ....'मैं एक फिल्म कर रहा था तब सेट पर एक दिन एक लड़का आया। उसने अपना नाम फरहान अख्तर बताया। मैं उसका चेहरा, बोलने का तरीका देखकर समझ गया कि वो आपका बेटा है। उसने मुझसे कहा कि, मैं आपको एक स्क्रिप्ट सुनाना चाहता हूं तो मैंने कहा कि अभी मैं कोई स्क्रिप्ट नहीं सुनना चाहता, आप छह महीने बाद आइए। ऐसा सुनकर वह चला गया। पर मैं इसके बाद इस बात का भी इंतजार कर रहा था कि अगले दो दिनों जावेद साहब का फोन आएगा और आप कहेंगे कि मेरे बेटे की स्क्रिप्ट सुन लो। जब एक हफ्ते तक आपका फोन नहीं आया तो मैं समझ गया कि ये बाद उसने आपको बताई नहीं है। बस यही बात उसकी मुझे अच्छी लग गई। मैंने अपने सेक्रेटरी से कहा...कि फरहान को फोन करके बुलाओ। फिर फरहान आया उसने मुझे स्क्रिप्ट नैरेट की। जैसे ही नैरेशन खत्म हुआ मैंने कहा-ये फिल्म मैं करूंगा। कहीं अगर आपका फोन आ गया होता तो मैं ये फिल्म शायद 6 महीने बाद ही करता।'
आपके जेहन में फरहान से जुड़ी कौन सी मेमोरीज हैं जिन्हें री-कलेक्ट करना चाहेंगे?
फरहान बहुत दिलचस्प बच्चा है, उससे जुड़ी बहुत सी यादें मेरे जेहन में हैं। जब वह 4-5 साल का रहा होगा, तब की उसकी एक बात मुझे याद आती है। मैं बेड पर लेटा हुआ था और वो अपने दोनों हाथ मेरे सीने पर रखे हुए मुझसे बात कर रहा था। मैंने उससे पूछा, यार ये बताओ ....मैं जब बुड्ढा हो जाऊंगा, काम नहीं कर पाऊंगा, तो तुम क्या मेरा ख्याल रखोगे। उसने कहा हां, मैं बिल्कुल आपका ख्याल रखूंगा। मैंने पूछा क्या करोगे, तो उसने कहा मैं आपके लिए सिगरेट लेकर आऊंगा। (उस समय मैं स्मोकिंग किया करता था।)
मैंने पूछा-तुम पैसे कहां से लाओगे, तो फरहान बोला मैं मम्मी से ले लूंगा। मैंने कहा-तुम्हारी मम्मी को भी तो मैं ही पैसे देता हूं, जब मैं कमाऊंगा ही नहीं तो उनके पास भी पैसे भी नहीं होंगे। फिर क्या करोगे। फिर एक सेकंड सोचने के बाद वो मुझसे लिपट गया और इमोशनल होते हुए बोला, पापा आप जिंदगी में कभी बुड्ढे मत होना।
आज भी जब वो मुझसे मॉडर्न जमाने की 'रॉक ऑन' जैसी फिल्मों में जवां दिलों को पसंद आने वाले गाने लिखवाता है, तो उसके पीछे वजह ये है कि वह नहीं चाहता कि मैं कभी बुड्ढा होऊं।
ये कैसे तय हुआ कि फरहान का नाम फरहान रखा जाए?
देखिए, फरहान मुजीफ साहब भी उस समय दुनिया में थे। वो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पढ़ाते थे। वे बहुत दिलचस्प आदमी थे और फिजिक्स के प्रोफेसर थे। वे अच्छे म्यूजिशियन थे, बेहतरीन गिटार बजाते थे। पेंटर भी अच्छे थे। उनकी पेंटिंग बिकने के लिए कतार लगती थी। वो मेरे अजीज दोस्त थे पर तब कम एयरलाइंस होने के कारण उनसे कम मिलना हो पाता था। जब मेरा बेटा हुआ तो मुझे लगा कि मेरा सबसे अजीज दोस्त जिससे मैं कम मिल पाता हूं, क्यों न बेटे का नाम उसी के नाम पर रख दूं।
मुझे उस वक्त नहीं पता था कि एयरलाइंस की संख्या इतनी ज्यादा हो जाएगी कि हर 15 दिन में अपने दोस्त से मैं मिल लूंगा, अगर ये पता होता तो मैं बेटे का नाम फरहान रखता ही नहीं। नाम रखने का असर ये हुआ कि जैसे फरहान मुजीफ साहब मल्टीटैलेंटेड आदमी थे वैसे ही मेरा बेटा फरहान भी मल्टीटैलेंटेड है। वह एक्टर भी है, राइटर भी है, प्रोड्यूसर भी है, सिंगर भी है।
आपको कब एहसास हुआ कि आपके बच्चे अब आपके दोस्त हो गए हैं?
शुरू से ही मेरा पिता के रूप में बच्चों से ट्रेडिशनल रवैया नहीं रहा है। फरहान का तो सेंस ऑफ ह्यूमर बहुत जबरदस्त है। फरहान ऐसे-ऐसे किस्से, जोक्स सुनाता है और बातें बताता रहता है कि फिर मैं भी जवाब में उसके जैसे ही हंसाने की कोशिश करता हूं और जताता हूं कि ऐसा न समझो बेटा कि सिर्फ तुम्हारे ही पास सेंस ऑफ ह्यूमर है। मैं अपने बच्चों के विचारों की कद्र करता हूं। कभी-कभी दु:ख होता है जब सुनता हूं कि फरहान को ट्विटर पर ट्रोल किया जा रहा है।
मेरे बच्चे ऐसे माहौल में पले-बढ़े हैं कि इनमें सांप्रदायिकता जैसी चीज आना तो बहुत दूर की बात है, जब सुनता हूं कि फरहान को ट्विटर पर ट्रोल किया जा रहा है तो बहुत दु:ख होता है। मैं उससे यही कहता हूं कि ये पागल लोग हैं, उनकी बातों पर ज्यादा ध्यान मत दो।
स्क्रिप्ट राइटर, पोएट और फिल्ममेकर के तौर पर फरहान को कैसे देखते हैं?
देखिए मैं बहुत ही ऑब्जेक्टिव टाइप का इंसान हूं। मुझे अगर कोई गाना पसंद नहीं आता तो फिर मैं उसे सुनता ही नहीं हूं। फरहान की पहली फिल्म 'दिल चाहता है' के बारे में कहूंगा कि वह पाथ ब्रेक्रिंग फिल्म थी। वह अपनी तरह की ही फिल्म थी। मुझे अपने दोनों बच्चों की कला पसंद है। उनकी कामयाबी से बहुत खुश हूं। खुशी की बता है कि दोनों ने घटिया काम करके कामयाबी नहीं पाई। उनका एक स्टैंडर्ड है। एक एक्टर के तौर पर मैं फरहान को बहुत अच्छा समझता हूं। उसकी डायरेक्ट की गई फिल्मों में एक फिनिशिंग देखने को मिलती है। उनका एक क्लास होता है। मैं इसकी प्रशंसा करना चाहता हूं। इस वक्त तो वो एक्टिंग में मशरूफ है, लेकिन जब भी वो अगली फिल्म बनाएगा तो बहुत पसंद की जाएगी। वह एक बच्चे की कहानी होगी।
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