पुणे. आज कॉमेडियन, एक्टर और निर्देशक असरानी का आज 78वां जन्मदिन है। 1 जनवरी 1941 को पंजाब के गुरदासपुर में जन्में असरानी ने एक्टिंग की एबीसीडी पुणे के फिल्म और टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एफटीआईआई) से सीखी। उनका पूरा नाम गोवर्धन असरानी है। आज हम उनकी लाइफ से जुड़ी एक दिलचस्प कहानी आपको बताने जा रहे हैं। असरानी ने एक टीवी इंटरव्यू में बताया था कि उनके परिजन उन्हें सिनेमा लाइन में नहीं जाने देना चाहते थे। पहली बार जब उन्होंने एक सिनेमा के पर्दे पर देख वे उन्हें मुंबई से उठाकर वापस गुरदासपुर ले गए थे।
घर से भागकर मुंबई आएथे असरानी
एक इंटरव्यू के दौरान असरानी ने बताया था कि, फिल्मों के प्रति उनका लगाव बचपन से ही था। वह अक्सर स्कूल से भाग कर सिनेमा देखने जाया करते थे। यह बात उनके घरवालों को पसंद नहीं थी और उन्होंने उनके सिनेमा देखने पर पाबंदियां लगा दी। उनके पिता चाहते थे कि वह बड़े होकर सरकारी नौकरी करें। उम्र बढ़ने के साथ फिल्मों के प्रति उनका लगाव जुनून में बदल गया और एक दिन असरानी घर में बिना किसी को कुछ बताए गुरदासपुर से भाग कर मुंबई आ गए।
ऐसे मिला पुणे के फिल्म इंस्टिट्यूट में दाखिला
मुंबई आने के बाद फिल्म लाइन में काम के लिए उन्होंने महीनों संघर्ष किया, लेकिन सफलता नहीं मिली। यहां उन्हें किसी ने बताया कि फिल्मों में एंट्री के लिए उन्हें पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट से डिप्लोमा करना पड़ेगा। 1960 में पुणे में फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट की स्थापना हुई। पहली बैच के लिए एक्टिंग कोर्स का विज्ञापन अखबारों में आया, इसे देख असरानी ने आवेदन किया। वे चुन लिए गए। 1964 में उन्होंने एक्टिंग का डिप्लोमा पूरा किया और फिर शुरू हुए फिल्मों में काम ढूंढने का काम।
जब मुंबई से ले गए थे घरवाले
पुणे से डिप्लोमा कर मुंबई लौटे असरानी को फिल्मों में छोटे-मोटे रोल मिले, लेकिन उनको पहली बार पहचान मिली फिल्म सीमा के एक गाने से। गुरदासपुर में जब उनके घरवालों ने इस गाने में उन्हें देखा तो वह सीधे मुंबई आएऔर असरानी को वापस अपने साथ ले गए। गुरदासपुर में कुछ दिन रहने के बाद वह किसी तरह घरवालों को मना कर मुंबई लौट आए।
एफटीआईआई में टीचर से एक्टिंग लाइन तक का सफर
मुंबई में बहुत दिनों तक काम ढूंढने के बाद भी उन्हें कोई रोल नहीं मिला, इसके बाद वह वापस पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट चले आये और एफटीआईआई में टीचर बन गए। इसदौरान वे अनेक फिल्म निर्माताओं के संपर्क में आए। बड़ा ब्रेक उन्हें ऋषिकेश मुखर्जी की साल 1969 में आई फिल्म 'सत्यकाम' के दौरान मिला लेकिन वह लाइम लाइट में आये 1971 में आई फिल्म 'गुड्डी' से। फिल्म में उन्हें कॉमिक रोल मिला, जिसे दर्शकों ने न सिर्फ पसंद किया बल्कि असरानी पर कॉमेडियन का ठप्पा भी लगा।
असरानी की चर्चित फिल्में
निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी और गुलजार का असरानी के जीवन में अहम योगदान रहा। इन दो फिल्मकारों की कई फिल्मों में असरानी अलग-अलग भूमिकाओं में नजर आए। पिया का घर, मेरे अपने, शोर, सीता और गीता, परिचय, बावर्ची, नमक हराम, अचानक, अनहोनी जैसी फिल्मों के जरिए असरानी दर्शकों में लोकप्रिय हो गए। इन फिल्मों में कहने को तो वे चरित्र कलाकार थे, मगर हास्य का पुट अधिक होने से दर्शकों ने उन्हें कॉमेडियन समझा। 1972 में आई फिल्म कोशिश और चैताली में असरानी ने निगेटिव किरदार भी निभाया।
'अंग्रेजों के जमाने के जेलर' वाला डायलॉग पहचान बना
अमिताभ की कई फिल्मों में उन्होंने हीरो की बराबरी वाले रोल निभाए, जैसे अभिमान (1973) में चंदर और चुपके चुपके (1975) में प्रशांत कुमार श्रीवास्तव का। छोटी सी बात (1975) में उनके द्वारा निभाया गया नागेश शास्त्री का किरदार भी किसी हीरो से कम नहीं है। शोले (1975) में एक संवाद बोलकर असरानी ने दर्शकों का ध्यान अपनी ओर खींचने में सफलता पाई। 'अंग्रेजों के जमाने के जेलर' वाला यह डायलॉग अब असरानी की पहचान बन चुका है।
फिल्मों का निर्देशन भी किया
फिल्मों में अभिनय के साथ-साथ असरानी ने कुछ फिल्मों का निर्देशन भी किया। उन्होंने 'चला मुरारी हीरो बनने' (1977) नाम की एक सेमी बायोग्राफिकल फिल्म बनाई। इसमें उन्होंने घर से भागकर ग्लैमर वल्र्ड की ओर आकर्षित होने वाले युवाओं की कहानी को दिखाया गया था। यह कहानी उनके अपने जीवन से इंसपायर्ड थी। हालांकि दर्शकों ने इसे नापसंद कर दिया, इसके बावजूद असरानी ने प्रयास जारी रखा और 'सलाम मेमसाब' (1979), 'हम नहीं सुधरेंगे' (1980), 'दिल ही तो है' (1993) तथा 'उड़ान' (1997) जैसी फिल्में बनाई।
फिल्म संस्थान से नहीं टूटा नाता
अस्सी के दशक में असरानी गुजराती सिनेमा की ओर मुड़े और वहां भी सफलता पाई। असरानी ने कई गुजराती फिल्मों में अभिनय किया। उन्हें बसु चटर्जी, शक्ति सामंत, गुलजार, ऋषिकेश मुखर्जी, एलवी प्रसाद जैसे डॉयरेक्टर्स के साथ काम करने का मौका मिला। असरानी आज भी पुणे के फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टिट्यूट में छात्रों को पढ़ाने आते हैं और उनके साथ अपने जीवन के खट्टे-मीठे पलों को शेयर करते हैं।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today