सेलिना जेटली बॉलीवुड में अपनी दूसरी पारी खेलने जा रही है, इसके लिए उन्होंने राम कमल मुखर्जी द्वारा निर्देशित 'सीजंस ग्रीटिंग्स' से आगाज भी कर दिया है। ऑस्ट्रिया में रह रहीं सेलिना कभी डिप्रेशन के दौर से भी गुजरी हैं। ऐसे में भास्कर से बातचीत में सेलिना ने अपनी पर्सनल लाइफ से जुड़ी कई बातें शेयर की हैं।
'सीजंस ग्रीटिंग्स' को कैसी मिली प्रतिक्रिया
ऊपर वाले की कृपा से राम कमल द्वारा निर्देशित 'सीजंस ग्रीटिंग्स' के लिए क्रिटिक्स और दर्शकों दोनों का बहुत प्यार मिल रहा है। मैं बहुत खुश हूं, क्योंकि इस मुकाम तक पहुंचने के लिए मुझे बहुत साल तक इंतजार करना पड़ा। एक्टर के तौर पर पहली बार इतनी प्रशंसा मिली है। मुझे ही नहीं, डारेक्टर राम कमल मुखर्जी को भी।
कमबैक के लिए 'सीजंस ग्रीटिंग्स' फिल्म को ही क्यों चुना?
मैं फिल्मों में वापसी नहीं करना चाहती थी, लेकिन पिछले साल मेरे माता-पिता के निधन के बाद मम्मी की आखिरी इच्छा पूरी करने की लिए मैंने वापसी की। मम्मी हमेशा चाहती थीं कि मैं फिल्मों में वापस आऊं। राम ने कहानी सुनाई जो मां-बेटी के रिश्तों और समलैंगिकता की खूबसूरत कहानी दर्शाती है। इससे में काफी इंस्पायर हुई।
आखिर फिल्मों से दूरी क्यों बना ली थी?
मेरी जर्नी अच्छी रही है, लेकिन 16-17 साल की उम्र से लगातार काम करके थक गयी थी। थोड़ा जिंदगी को भी जीना चाहती थी। मैं दो बार जुड़वा बच्चों की मां भी बनी और कई देशों में रही। मम्मी की आखिरी इच्छा पूरी करने के लिए में फिल्मों में वापस आई हूं।
कभी कास्टिंग काउच या मी टू का सामना हुआ
कास्टिंग काउच का सभी को कभी न कभी सामना करना पड़ता है। मैंने “ना” कहकर किया और आगे बढ़ती गई। काफी अच्छे लोग भी मिले। जिंदगी में उतार चढ़ाव तो आते रहते हैं। बस हमें आगे चलते रहना चाहिए।डिप्रेशन से कैसे किया सामनामेरे माता-पिता और बेबी तीनों का निधन लगभग एक साथ हुआ, उसके बाद मैं बहुत डिप्रेस हो गई थी,‘सीजंस ग्रीटिंग्स’, पति और साइकलाजिकल काउन्सलिंग की मदद से अब में बेहतर हूं।
ऑस्ट्रिया में कोरोना वायरस से कैसा है माहौल
हम काफी अरसे से लॉकडाउन में है। ऑस्ट्रिया के प्रधानमंत्री ने इटली के हालात देखते ही मार्च में लाॅकडाउन कर दिया। अब धीरे-धीरे स्थिति ठीक हो रही है। मेरा सारा समय सीजंस ग्रीटिंग्स के प्रमोशन में और बच्चों को पढ़ाने में निकलता है। लॉकडाउन के कारण मुझे बच्चों को हिंदी, संस्कृत मंत्र और महाभारत-रामायण आदि भी सिखाने का वक्त मिला, जो कि सामान्य स्कूल के दिनों में नहीं मिलता।
बच्चों को भारतीय संस्कृति और सभ्यता से कैसे जोड़ा
जी कोशिश तो जारी है। हिंदी, संस्कृत श्लोक, धार्मिक कहानियां सब सिखा रहीं हूं। आसान नहीं है, क्योंकि बच्चे जर्मन बोलते है और पढ़ाई भी सारी जर्मन में है, लेकिन कोशिश जारी है।
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