इरफान खान के खास दोस्त और उनके साथ 'हिंदी मीडियम' और 'अंग्रेजी मीडियम' जैसी फिल्मों में नजर आ चुके दीपक डोबरियाल ने इरफान से जुड़ी अपनी कुछ यादों को लेकर दैनिक भास्कर से खास बातचीत की। उन्होंने बताया कि इरफान के साथ मेरी आखिरी मुलाकात 5 महीने पहले हुई थी। हम दोनों की ट्यूनिंग काफी अच्छी थी और हम भाइयों की तरह थे। काश मैं उनकी अंतिम यात्रा में शामिल हो पाता।
दीपक ने कहा 'इरफान खान से मेरी आखरी मुलाकात 5 महीना पहले 'अंग्रेजी मीडियम' की शूटिंग के दौरान लंदन में हुई थी। फिल्म का दूसरा पोर्शन वहीं पर शूट हुआ था। वहां पर वे अपना इलाज भी करवा रहे थे, लेकिन उन्होंने कभी किसी मेंबर को अपनी बीमारी का एहसास तक नहीं करवाया। वे नहीं चाहते थे कि उनके दुख की वजह से कोई और दुखी हो, जबकि यह बात सबको पता थी, पर उन्होंने कभी अपनी तकलीफ के बारे में किसी को बताया नहीं। वे नहीं चाहते थे कि उन्हें देखकर कोई सहानुभूति का भाव रखे। सेट पर पूरे समय उन्होंने सबके साथ बिल्कुल सामान्य और वास्तविक भाव रखा था।'
दीपक बोले- वे मुझे खूब सपोर्ट करते थे
आगे उन्होंने बताया, 'मैंने इरफान खान के साथ 'हिंदी मीडियम', 'अंग्रेजी मीडियम' सहित दो-तीन फिल्मों में काम किया। शूटिंग के बाद भी हमारी ट्यूनिंग अच्छी थी। हम भाइयों की तरह थे। वे मुझे बहुत सपोर्ट करते थे। मेरे बारे में डायरेक्टर से बोलते थे कि वह जो कर रहा है उसे करने देना, रोकना मत। उनके साथ शूट करने में ऐसा लगता था कि सीन में होने के बाद भी वे पीठ थपथपा रहे हैं। मुझे तो अभी भी नहीं लग रहा है कि वह हमारे बीच में नहीं है।'
इरफान के लिए प्रार्थना करने मंदिर गए थे
दीपक के मुताबिक 'मार्च 2018 में जब उन्होंने पहली बार ट्वीट पर अपनी बीमारी के बारे बताया तो मुझे भी पहली बार तब ही पता चला था। उस समय मैं 'लाल कप्तान' की शूटिंग कर रहा था। फिर तो उस फिल्म के काफी क्रू मेंबर प्रार्थना करने के लिए मंदिर गए थे। इस फिल्म की शूटिंग रामात्रा में हो रही थी। उनके साथ मैं भी गया था।'
काश उनकी अंतिम यात्रा में शामिल हो पाता
दीपक ने आगे कहा, 'हमारी ट्यूनिंग इतनी अच्छी थी कि वे हर जगह मुझे सपोर्ट करते थे। उन्होंने मुझे 'ब्लैकमेल' और 'करीब-करीब सिंगल' फिल्म भी ऑफर की थी। लेकिन किन्ही वजहों से मैं ये फिल्में कर नहीं पाया था, पर वे चाहते थे कि मैं फिल्में करता रहूं। उनका इस तरह से सहयोगी स्वभाव था। इरफान भाई की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि अगर कोई सीन में जान डालता है, उसे रियल करता है, तब वे उसे बहुत सपोर्ट करते थे। उनके साथ बैठना ही यादगार है। उनकी यादों में दीवान लिख सकता हूं लेकिन अभी इस हालत में नहीं हूं कि और बात कर सकूं। काश उनके अंतिम यात्रा में शामिल हो पाता लेकिन हम सब लाक डाउन में फंसे हैं।'
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