अमिताभ बच्चन और आयुष्मान खुराना स्टारर 'गुलाबो सिताबो' का वर्ल्ड डिजिटल प्रीमियर 12 जून को होगा। इस फिल्म की शूटिंग पिछले साल हुई थी, लेकिन बिग बी से इसका आइडिया 3 साल पहले डिस्कस हो चुका था। फिल्म में वे मिर्जा नाम के बुजुर्ग का रोल कर रहे हैं, जिसकी अपने किरायेदार बांके से बिल्कुल नहीं पटती।
फिल्म की कहानी जूही चतुर्वेदी ने लिखी है। बिग बी पहले उनके साथ 'पीकू' कर चुके हैं। जूही ने दैनिक भास्कर से बातचीत में अमिताभ के कैरेक्टर की तैयारियों को लेकर काफी कुछ बताया। उन्होंने बताया कि फिल्म की शूटिंग बिग बी ने लखनऊ के 47 डिग्री वाली गर्मी मेंपूरी की है।
Q.किन वजहों से बिग बी ने फिल्म के लिए हामी भरी?
जूही: फिल्म का बैकड्राप लखनऊ का है। बच्चन साहब खुद इलाहाबाद के हैं, तो उन्हें पता था कि वे मिर्जा के किरदार में क्या जादू करने वाले हैं। यह संभवतः उनके करियर की पहली ऐसी फिल्म है, जिसे उन्होंने लखनऊ में शूट किया है।
Q. उनकी तरफ से क्या इनपुट थे?
जूही: उनकी वजह से मेरा काम आधा हो गया। उन्होंने इससे पहले कभी कोई फिल्म वहां शूट भले न की हो, लेकिन उस शहर से तो उनका वास्ता रहा ही है। मिर्जा जैसे लोगों का खान-पान, उठना-बैठना, चलना उन सब से बच्चन साहब वाकिफ थे। मिर्जा लखनऊ की जिस गली में रहता है, वहां के शोर से भी अमिताभ भली-भांति परिचित थे।
लिहाजा हमने मिर्जा के रहने के ठिकाने के रूप में हजरतगंज, अमीनाबाद, जो कुछ भी लिखा, उसको बच्चन साहब ने अपने परफॉर्मेंस से बिल्कुल जिंदा कर दिया। हम बस सीन और डायलॉग उन्हें दे देते थे और निश्चिंत होकर बैठ जाते थे। बाकी का काम वे खुद संभाल लेते थे। क्योंकि कहां बोलते-बोलते पॉज लेना है और कहां नुक्ता लगाना है? वह सब उन्हें पता था।
Q.अपने किरदार और उसके अतीत को लेकर उनकी तरफ से क्या सवालात थे?
जूही: बच्चन साहब के सवाल कम थे। उनकी तरफ से वैल्यू एडिशन ज्यादा थे। मिर्जा को सुनते ही वे पूरी तरह उस किरदार में डूब चुके थे। क्योंकि मिर्जा का लुक खास है, बात करने का अलग ढंग है, अलग बॉडी लैंग्वेज है। वह झुक कर चलता है। उसकी दाढ़ी, टोपी, गमछा, चश्मा, चप्पल यह सब उसे बिल्कुल अलग बनाता है। उसकी कूबड़ निकली हुई है। उसकी भौंहें एक ओर से तनी हुई हैं। आंखें बड़ी- बड़ी करके बोलता है। इन सबके अलावा भी बच्चन साहब कैरेक्टर में अपनी ओर से और भी कुछ जोड़ना चाहते थे।
Q. प्रोस्थेटिक में भी काफी वक्त जाता होगा?
जूही: जी हां, वह भी लखनऊ जैसे इलाके में। जून-जुलाई की गर्मी में। हमारी शूटिंग ज्यादातर आउटडोर होती थी। बाकियों के लिए तो सेट पर पंखे लग जाते थे, लेकिन 77 के बच्चन साहब को 47 डिग्री तापमान की कड़ी धूप में चलना फिरना, उठना-बैठना होता था। उन्होंने सब कुछ बहुत जिम्मेदारी के साथकिया। उन्होंने जितना कुछ पढ़ा-लिखा और जिंदगी में देखा, वह सब मिर्जा को आत्मसात करने में उड़ेल दिया।
Q. आयुष्मान ने अपने कैरेक्टर बांके के लिए क्या कुछ किया?
जूही: उनके लिए लखनऊ पहली बार नहीं था। इससे पहले भी वे कई फिल्में वहां कर चुके हैं। हालांकि, आयुष्मान ने बहुत दिमाग लगाया और सोचा कि वह ऐसा क्या करें, जो बिल्कुल अलग लगे। ट्रेलर में साफ देखने को मिलता है कि आयुष्मान ने अपने लिए बिल्कुल सड़क छाप भाषा रखी है। पायजामेका नाड़ा बाहर निकला रहता है। वे बार-बार हमसे पूछते थे कि, मैं सड़क छाप लग रहा हूंया नहीं?
Q. आप ऊपरी तौर पर कुछ धीर, गंभीर नजर आती हैं। लेकिन आपकी कहानियों में ह्यूमर है। यह कंट्रास्ट क्यों?
जूही:मेरे लिए ह्यूमर डिफेंस मैकेनिज्म है। तकलीफ हर किसी की जिंदगी में आती रही है। मेरी जिंदगी में भी रही है, लेकिन ऐसा नहीं है कि उस पर सिर्फ मेरा ही कॉपीराइट है। हां, मुझे जो चीज तंग करती है, मैं उस पर तंज करने की कोशिश करती हूं। परेशानियों से डील करने का यह अपना तरीका है। अपनी जिंदगी में आने वाली हर परेशानी से मैं सीख लेती हूं। वह मुझ पर हावी हो, उससे पहले मैं उसका मजाक बनाकर उसे साइड में रख देती हूं। यह मेरी जिंदगी का फलसफा है। इसे मैंने कईकिरदारों के जरिए फिल्मोंमें भी उताराहै।
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